जलवायु परिर्वतन से बढ़ रही हैं प्रीटर्म डिलीवरी

जलवायु परिर्वतन से बढ़ रही हैं प्रीटर्म डिलीवरी

नरजिस हुसैन

जलवायु परिवर्तन का एक जानलेवा असर जो जिन्दगी की शुरूआत से पहले ही दम तोड़ रहा है। किसी को शायद अभी दिखाई नहीं दे रहा है लेकिन, पूरी दुनिया की संभावित माताओं पर यह दिखना शुरू हो गया है। भारत में तो फिलहाल इसपर अभी काम शुरू नहीं हुआ है लेकिन, कई विदेशी एजेंसियों और शोध संस्थानों ने पाया कि जलवायु परिवर्तन यानी क्लामेट चेंज का असर प्रजनन स्वास्थ्य और गर्भवती औरतों पर सीधा पड़ रहा है। अमेरिका की टेक्सास और ए एंड एम विश्वविद्यालय में की गई एक रिसर्च में यह बात सामने आई कि ज्यादा गर्म तापमान औऱ दूषित हवा में सांस लेने से या तो प्रीटर्म बच्चे पैदा होते हैं या गर्भपात होता है। रिसर्च को यहां पढ़ा जा सकता है (https://www.pnas.org/content/116/24/11590)

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ये बात सच है कि क्लामेट चेंड की वजह से मौसम का चक्र सबसे ज्यादा बिगड़ा है। अब गर्मियों में बेहद गर्मी और सर्दियों में खूब ठंड होती है। यही नहीं अब बेमौसम बारिशों का सिलसिला पहले के बनिस्बत ज्यादा हुआ है। बात अगर भारत या दक्षिण एशियाई देशों की जाए तो यहां समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाली गर्भवती औरतों में जहां गर्भपात के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं वहीं समुद्र से दूर जमीन वाले इलाकों में प्रीटर्म डिलिवरी ज्यादा हो रही है। गर्भपात की वजह रिसर्चर लगातार पानी का बढ़ता स्तर और उसी के साथ पानी में बढ़ता खारापन है। इस खारेपन का असर मिट्टी पर तो बहुत जल्द दिखाई दे जाता है लेकिन, मानव शरीर में भी यह खारापन धीमी रफ्तार से बुरा असर डालता जा रहा है।

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बांग्लादेश में (International Centre for Diarrhoeal Disease Research Bangladesh (ICDDRB) की रिसर्च में कहा गया है कि इस कारण लोगों ने तटीय इलाकों को छोड़कर अंदर जमीन से घिरी जगहों पर जाना शुरू कर दिया है। ग्लोबल वार्मिंग से जिस तरह से पूरी दुनिया का वातावरण गर्म होना शुरू हो गया है उससे सबसे पहले नदियों में पानी का स्तर बढ़ना भी शुरू हुआ है। नमक से भरा ये पानी खारा है जो नदियों, जलाश्यों और धीरे-धीरे जमीने के अंदर संरक्षित पानी को भी तेजी से खारा कर रहा है। पानी यह खारापन गर्भाधान की मता को भी धीरे-धीरे कम कर रहा है। लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है जिसके चलते खेती और नस्ल दोनों ही खराब हो रही हैं।

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हालांकि, भारत में हालात दूसरे हैं यहां गर्म और दूषित हवा ने आम इंसान को बीमार बनाना शुरू कर दिया है। जरूरत से ज्यादा गर्म और जहरीली हवाओं ने प्रीटर्म डिलिवरी की बयार चला दी है। गर्भावस्था में वैसे ही औरत के शरीर का तापमान थोड़ ज्यादा रहता है और उस पर वातावरण की असहनीय गर्मी ये हालात जच्चा और बच्चा दोनों के ही लिए जानलेवा होते हैं। प्रीटर्म पैदा हुआ बच्चा भी कम वजन का होता है जो इतने गर्म तापमान को सहने लायक नहीं होता। जलवायु परिर्वतन पर अंतर-सरकारी पैनल यानी आईपीसीसी की 2013 की रिपोर्ट बताती है कि अगर दुनिया के सभी देश इसी तरह ग्रीन हाउस गैसों को निष्कासित करते रहेंगे तो आने वाले सालों में पूरी दुनिया का तापमान 5-10 डिग्री तक बढ़ सकता है। इस बढ़ते तापमान के साथ जब हवाओं में अमोनियम सल्फेट शामिल हो जाता है तो यह जहरीली हवा बन जाती है। जिसमें सांस लेना आम इंसान का जनलेवा है वहीं गर्भवती औरत को दो जान खोने का डर बढ़ता जा रहा है। कोयला, मरे हुए जानवर और खेतों में आग हवा को लगातार जहरीला बनाती जा रही है। इससे लोग तो बीमार हो ही रहे है साथ में अलग-अळग शोधों में जनकारों ने माना है कि गर्भवती महिला का गर्भ भी ठहरने में दिक्कत हो रही है।

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जलवायु परिवर्तन का सीधा असर प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ता है। इसकी वजह है कि ज्यादा गर्म तापमान लोगों को शारीरिक संबंध बनाने में अड़चन पैदा करते हैं। ऐसे तापमान को लोग इस लिहाज से बेहतर नहीं मानते। दूसरा, वैज्ञानिकों का मानना है कि गर्म तापमान का नकारात्मक असर पुरुषों के स्पर्म पर पड़ता है जबकि औरतों के मासिक धर्म में इतनी गर्मी में संतुलन नहीं रह पाता। हालांकि, ये तमाम बातें और तथ्य एकदम दिखाई देने वाले नहीं है लेकिन, यह सच है कि अब जलवायु परिर्वतन से कोई बचा नहीं है। दुनिया की सरकारों को वक्त रहते इस पर काबू करने की कोई नीति तो बनानी ही होगी इससे पहले कि पृथ्वी नाम के इस गृह से इंसान का वजूद खत्म हो जाए।

 

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